भारत समेत दुनियाभर में इंटरनेट का यूज ज्यादा बढ़ गया है. आज हर कोई इंटरनेट पर डिपेंड हो गया है. यानि लोग अब डिजिटल जमाने में जी रहे हैं. 100 में से 95 फीसदी काम डिजिटल हो गए हैं. ऐसे में इंटरनेट की मांग ज्यादा बढ़ गई है. छोटी से छोटी कंपनी से लेकर निजी और सरकारी कंपनियां इंटरनेट पर निर्भर हैं, क्योंकि उनकी इन्फोर्मेशन और उनका डाटा इंटरनेट पर मौजूद होता है. यानि अब इंटरनेट लोगों की बेसिक जरुरत बन गया है. बीते कुछ सालों में इसका विकास और विस्तार तेजी से हुआ है. भारत की बात करें तो यहां 5जी के लॉन्च होने के बाद तो बड़ी-बड़ी कंपनियां अपनी नेटवर्किंग कोने-कोने तक पहुंचा रही हैं. ऐसा करने से उन्हें काफी फायदा हो रहा है. लेकिन क्या आपको पता है कि यह इंटरनेट इन कंपनियों को नुकसान भी पहुंचा सकता है. दरअसल, बढ़ते इंटरनेट के यूज के साथ साइबर क्राइम का खतरा भी बढ़ गया है. पिछले कुछ सालों में कई इंडस्ट्रियों ने साइबर अटैक का सामना किया है. आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि हैकर्स के किन-किन कंपनियों को अपने चंगुल में फंसाया.
हैकर्स करते जरूरी डाटा की चोरी
सभी जानते हैं कि फोन से लेकर कम्प्यूटर तक में जमा डाटा काफी महत्वपूर्ण होता है. ताकि जब जरुरत पड़े उसका यूज कर सकें. इसीलिए डेटा सेव किया जाता है. लेकिन इसकी सिक्योरिटी भी बहुत ही जरुरी है, क्योंकि इस साइबर स्पेस में आज हैकर्स काफी एक्टिव हो गए हैं. आये दिन साइबर अटैक, वेबसाइट हैक, डाटा लीक, सर्वर हैक जैसे मामले सुनने को मिलते हैं. क्योंकि हैकर्स इन सभी का डाटा बड़ी आसानी से चुरा लेते हैं. स्वास्थय विभाग की ही बात करें तो हैकर्स को स्वास्थ्य बीमा, मेडिकल रिकॉर्ड नंबर, और सामाजिक सुरक्षा नंबर मिल जाता है, जिसके कारण मरीजों को रैनसमवेयर गिरोह से सीधा खतरा रहता है. दरअसल, हैकर्स मरीजों का डेटा चोरी करके उन्हें धमकाते हैं और मोटी रकम की मांग करते हैं.
इंडिया में कई कंपनियों ने झेले साइबर अटैक्स
साल 2022 में भारत ने कई साइबर अटैक्स झेले हैं. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा में रहा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में हुआ साइबर हमला. दरअसल, एम्स में हुए साइबर अटैक के बाद पूरे देश में हड़कंप मच गया था. क्योंकि रैंसमवेयर हमले में एम्स के सर्वर को निशाना बनाया गया था. जिसके बाद एम्स के कई सर्वरों ने काम करना बंद कर दिया था. ई-नेटवर्क भी बंद हो गया था. ऐसे में इमरजेंसी, बहिरंग मरीज, अंत: रोगी और लैब विंग सहित सभी काम हाथों से करना पड़ा. कहा जा रहा था कि पूर्व प्रधानमंत्रियों, मंत्रियों, नौकरशाहों और न्यायाधीशों जैसे वीआईपी सहित करोड़ों मरीजों के डाटा से समझौता किया गया था. हालांकि, आईटी की जांच के बाद सामने आया कि डाटा को डिक्रिप्ट कर लिया गया था. इसके बाद हैकर्स अस्पतालों से मरीजों का रिकॉर्ड लीक करने धमकी देकर मोटी रकम की मांग कर रहे थे.
साइबर अटैक्स का दंश झेल रहे हेल्थकेयर
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 की तुलना में 2022 में साइबर हमलों में 38% ग्लोबली की बढ़ोतरी देखी गई है. और भारत में हेल्थकेयर सबसे ज्यादा टारगेटेड इंडस्ट्री रही है. चेक प्वाइंट सॉफ्टवेयर में डेटा ग्रुप मैनेजर ओमर डेम्बिन्स्की के मुताबिक, हैकर्स सबसे ज्यादा हॉस्पिटल्स को निशाना बनाना पसंद करते हैं, जिसका कारण है छोटे अस्पतालों में साइबर सुरक्षा संसाधनों की कमी होना. हालांकि, हैकर्स ने नवंबर 2022 में भारत के प्रमुख सरकारी स्वास्थ्य सेवा संस्थान को रैंसमवेयर हमले का निशाना बनाया था, जो चीन से किया गया था. सीसीओई के तहत हुए रिसर्च में बताया गया कि अस्पतालों 28 नवंबर 2022 तक लगभग 19 लाख हमले हुए. इतना ही नहीं, हमलावरों ने नेटवर्क में मैलिशियस पेलोड डालने का भी प्रयास किया. लेकिन सफल नहीं हो सके.
शिक्षा के क्षेत्र पर भी पड़ा असर
सीपीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, बैंकिग और शिक्षा के क्षेत्र में भी साइबर क्राइम का असर पड़ा है. इन्हें भी हैकर्स ने अपना शिकार बनाया है. ये साइबर हमले छोटे, अधिक फुर्तीले हैकर्स और रैंसमवेयर गिरोह ऑपरेट करते हैं. कहा जाता है कि कोविड महामारी के बाद से लोग सबसे ज्यादा ऑनलाइन वर्क करना पसंद करते हैं. जिसके चलते साइबर अपराधी भी एक्टिव हो गए हैं. यह वर्क-फ्रॉम-होम वातावरण में उपयोग किए जाने वाले डिवाइसों के दोहन पर ध्यान केंद्रित करते हैं और उन शिक्षा संस्थानों को निशाना बनाते हैं, जो ऑनलाइन लर्निंग को ज्यादा महत्व देते हैं.
बैंकिग सेक्टर्स को भी नहीं छोड़ा
वहीं बैंकों में भी साइबर हमलों से निपटने के लिए सुरक्षा सिस्टम पुख्ता नहीं है. जिसके चलते हैकर्स आसानी से बैंकों को अपना शिकार बना लेते हैं. एशिया में सबसे ज्यादा हैकर्स की नजर भारतीय बैंकिंग वित्त सेवा और बीमा (बीएफएसआइ) पर रही. सरकारी आंकड़ों ने भी बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र पर हमलों में बढ़ोतरी की पुष्टि की है. साल 2022 की बात करें तो सरकार ने संसद में बताया कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र पर साइबर हमले में तेजी आयी है. वहीं, जून 2018 और मार्च 2022 के बीच हैकर्स ने बैंको से डेटा चोरी की 248 घटनाओं को अंजाम दिया है. जिनमें से 41 सार्वजनिक क्षेत्र, 205 निजी और 2 विदेशी बैंक शामिल हैं.
हैकर्स के लिए फिशिंग काफी हेल्पफुल
इस साइबर की दुनिया में हैकर्स फिशिंग को काफी हेल्पफुल मानते हैं. इसके जरिए हैकर्स लोगों को ईमेल भेजकर लालच देकर या फिर बैंक, फेसबुक, इंस्टाग्राम की प्रोब्लम्स को सॉल्व करने के लिए लिंक भेजते हैं और उन्हें ओपन करने के लिए इंसिस्ट करते हैं. जिसमें लोगों फंस जाते हैं और अपनी निजी जानकारी साझा कर देते हैं. जिसके जरिए फिर हैकर्स उन्हें हानि पहुंचाते हैं और फिरोती मांगते हैं. एक शोध के मुताबिक, एफटीपी, MYSQL और MSSQL प्रोटोकॉल्स के ‘लॉगिन इनफॉर्मेशन’, ‘एनक्रिप्शन की’ को जानने या ‘हिडेन वेबपेज’ पर जाने के लिए कोशिश की जाती है. इतना ही नहीं, इन दिनों हमलावर लंबे पासवर्ड का यूज कर रहे हैं, जिसमें अंग्रेजी के वर्ड्स शामिल नहीं होते हैं. माना जा रहा है कि भविष्य में साइबर अटैक्स के मामले ज्यादा बढ़ जाएंगे. ऐसे में अब देखना होगा कि आखिर इसका कोई उपाय निकलेगा या फिर लोगों के लिए परेशानियों का सबब जारी रहेगा.