Parliament Monsoon : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरवाल की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है। केंद्र सरकार ने लोकसभा (LOKSABHA) में दिल्ली सरकार के अधिकारों और सेवाओं के जुड़ा बिल पारित कर दिया है। इस बिल का नाम गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2023 है। अगर ये बिल पास हो जाता है तो दिल्ली सरकार के पास से अफसरों की पोस्टिंग-ट्रांसफर का अधिकार छिन जाएगा. इसे लेकर लोकसभा में विपक्षी पार्टियां जमकर हंगामा कर रही हैं. लेकिन इसका कोई असर नहीं दिया. इस पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधिर रंजन चौधरी ने सवाल किए तो शाह ने संविधान का हवाल देकर जवाब दे दिया।
Parliament में रंजन के सवाल पर शाह का जवाब
कांग्रेस नेता अधिर रंजन ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया और कहा कि ये सुप्रिम कोर्ट का फैसला बदलनी की साफ कोशिश है। वहीं केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा कि संविधान संसद को कानून बनाने की इजाजत देता है और सुप्रीम कोर्ट ने भी कोई रोक नहीं लगाई. साथ ही शाह ने कहा कि इस तरह के सभी बयान केवल राजनैतिक हैं। पिछले महीने जब जुलाई में अध्यादेश को कैबिनेट की मंजूरी दी गई तो आप ने इसका काफी विरोध किया। आप सांसद राघव चड्ढा न कहा कि इस अध्यादेश के आने से दिल्ली सरकार के की सारी शक्तियां छिन जाएंगी।
बीजेपी को मिला बीजेडी का साथ
केंद्र सरकार द्वारा जारी दिल्ली सेवा बिल को बीजू जनता दल यानी बीजेडी का समर्थन मिला है। बीजेडी अलग पार्टी है. ये पार्टी ना तो विपक्ष के I.N.D.I.A का हिस्सा है और न ही सत्तारूढ़ NDA पार्टी का हिस्सा है। इसके समर्थन में पार्टी खुद आगे आई है. बीजेडी ने अपना रुख साफ करते हुए कहा कि वे विधेयक पर केंद्र का समर्थन करेंगे। बीजद का आधिकारिक रुख एकजुट विपक्ष के लिए एक झटका है, जो राज्यसभा में विधेयक को हराने के लिए बहुमत जुटाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि ये तो अभी राज्यसभा में बिल पास होने के बाद तय होगा कि आखिर ये कानून बनता है या नहीं।
कोर्ट ने एलजी को नोटिस किया था जारी
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को आदेश दिया था कि अफसरों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की पावर दिल्ली सरकार के पास ही रहेगी। कोर्ट के इसी फैसले को केंद्र ने 19 मई को अध्यादेश के जरिए पलट दिया था। इसके बाद केजरीवाल ने 30 जून को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पहली सुनवाई 4 जुलाई को की। इसके चलते कोर्ट ने केंद्र और LG को नोटिस जारी किया था। केंद्र सरकार ने SC में एफिडेविट दिया था। जिसमें संविधान के आर्टिकल 264(4) का जिक्र था। केंद्र का कहना था कि यह आर्टिकल संसद को भारत के किसी भी मालमें के संबंध में कानून बनाने का अधिकार देता है। यह किसी राज्य के पास मौजूद नहीं है।
केंद्र कब कर सकता है अध्यादेश जारी
विधेयक केंद्र सरकार को अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्यों, नियमों और सेवा की अन्य शर्तों सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के मामलों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार देता है। इसी के तहत केंद्र ने 19 मई को दिल्ली में सेवाओं पर नियंत्रण के लिए अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं का नियंत्रण आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार को सौंपने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ दिनों बाद जारी किया गया था।