इंसानों से लेकर जानवरों (animal) तक जुल्म और पीड़ा देने की घटनाएं हमारे देश में लगातार बढ़ती जा रही हैं। जानवरों (animal) के प्रति इंसानों का दुर्व्यवहार कई बार देखने को मिलता है। कई बार स्ट्रीट डॉग्स को पानी में फेकने या लाठी डंडों से मारने का वीडियो सामने आता है। बीते 2 साल पहले केरल का एक वीडियो वायरल हुआ था। जहां पर एक गर्भवती हथिनी के फल के जैसा दिखने वाला पटाखा खाने से मौत हो गई थी। ऐसा करने वाले लोग या तो जानवरों (animal) को टॉर्चर करने के इरादे से करते हैं या फिर वह एबयूजर माइंड के होते हैं। जानवरों (animal) के साथ दुर्व्यवहार करते हैं एबयूजर या सैडिस्ट, सेरोटोनिन की कमी से होते हैं ये लक्षण?
एबयूजर या सैडिस्ट पहुंचाते हैं तकलीफ
एबयूजर या सैडिस्ट लोग ही अक्सर दूसरों या जानवरों को हानि पहुंचाते हैं। ऐसे लोगों को दूसरो को पीड़ा और तकलीफ देने में खुशी और सुकून मिलता है। इनमें भी कई तरह से दुख पहुंचाने की क्वालिटी होती है। मेंटली और फिजिकली। ऐसे लोग किसी और को नुकसन पहुंचाने की बजाय जानवरों पर अपना गुस्सा निकालते हैं।
दुख, अकेलापन होते हैं सैडिस्ट के लक्षण
सैडिस्ट यानी (परपीड़क) का मेडिकल लैंग्वेज में मतलब है कि वह व्यक्ति जिसे दूसरों को दुख पहुंचाने में मजा आता हो। इसमें गुस्सा, डर जेसी चीजें इसमें शामिल हैं। इसकी वजह दुख, अकेलापन, बदलाव होता है, जो किसी इंसान को क्राइम करने के लिए मजबूर करता है।
सेरोटोनिन की कमी से आता है गुस्सा
कई स्पेशलिस्ट का मानना है कि किसी भी इंसान के अंदर किसी बीमारी का पैदा होना हालात सबसा बड़ा कारण होता है। जब इंसानी दिमाग में सेरोटोनिन जैसा केमिकल कम होता है तब लोगों को ज्यादा गुस्सा आने लगता है। वह अपना आपा खो देते हैं। इसके चलते वह सबसे ज्यादा बेजुवानों को तकलीफ पहुंचाते हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जानवरों (animal) को परेशान या दुख पहुंचाने वालों के लिए इंसानों को भी चोट पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं है। 30% से ज्यादा अपराधी जानवर एबयूजर होते हैं। इनमें डोमेस्टिक वायलेंस के 70% से ज्यादा लोग शामिल होते हैं।
Animal Cruelty को रोकने के लिए ये हैं नियम
देश में पशु क्रूरता को रोकने के लिए साल 1960 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम बनाया गया था। इसके साथ ही इस ऐक्ट की धारा-4 के तहत साल 1962 में भारतीय पशु कल्याण बोर्ड का गठन भी किया गया। इसका उद्देश्य पशुओं को सजा या जानवरों (animal) के साथ उत्पीड़न को रोकना है।
मामले को लेकर कई तरह के प्रावधान इस ऐक्ट में शामिल हैं। जैसे अगर कोई पशु मालिक अपने पालतू जानवर (animal) को आवारा छोड़ देता है, या उसका इलाज नहीं कराता, भूखा-प्यासा रखता है तब ऐसा व्यक्ति पशु क्रूरता का अपराधी होगा। इसके अलावा अगर कोई किसी पशु को मजे के लिए अपने पास रखता है और उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करता है तो वह भी अपराध है।