उत्तराखंड के जोशीमठ को न जानें किस की नजर लगी है. दिन-ब-दिन जोशीमठ की जमीन धंसकते ही जा रही है. सड़कों से लेकर लोगों के घरों तक दरारें बढ़ती ही जा रही है. 1976 से ही जोशीमठ के तबाह होने के संकेत मिलने लगे थे. अब कुदरत ही इस शहर को बचा सकता है. पूरा शहर धीरे-धीरे जमीन में धंस रहा है. और कोई कुछ नहीं कर पा रहा है. लोगों के घर उनकी आंखों के सामने खत्म हो रहे हैं. और वो जानकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं. हजारों लोग डर के साये में रात गुजार रहे हैं. कुछ लोग तो कड़ाके की ठंड के बीच घर छोड़ कर सड़क पर ही रात बिताने को मजबूर हैं. वहीं, कुछ लोग तो पलायन करने को बेबस हो गए हैं. कोई पीठ पर गैस सिलेंडर बांधे दिख रहा है. तो कोई अपने आंखों में आंसू लिए बच्चों को लेकर चलते नजर आ रहे हैं. उन्हें अपनी सालों की मेहनत और उससे जमी हुई घर गृहस्थी के मलबे में मिलने जाने का डर है. चारो तरफ चीख पुकार है.
लोग रोते-बिलखते मदद की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन प्रकृति के आगे हर कोई बेबस और लाचार नजर आता है शहर में लगातार जमीनें धसक रही हैं. सड़कें फटने लगी हैं. धरती से कई तरह की आवाजें सुनाई दे रही हैं. मानो कड़ाके की ठंड में धरती कांप रही हो. यह सब देखकर ऐसा लग रहा है, शहर कुछ ही दिन का मेहमान बचा है.
रिपार्ट्स से मुताबिक, शहर के करीब 700 से भी ज्यादा घरों,दुकानों और इमारतों में दरारें आ गई हैं. कई घरों की तो दीवारें लटकने लगी हैं. किराएदार भी लैंड स्लाइड के डर से घर छोड़कर चले गए हैं. रेड जोन के मकानों को लगातार खाली कराया जा रहा है. लगभग 4000 लोग इस आपदा में प्रभावित बताए जा रहे हैं. ऐसे में प्रशासन के सामने लोगों के पुनर्वास की बड़ी समस्या है. लोग शेल्टर होम से लेकर गुरुद्वारे तक में शरण ले रहे हैं. जोशीमठ के कई प्रभावित परिवारों की जिंदगी एक कमरे में सिमट गई है. अब इन्हें आगे का रास्ता नजर नहीं आ रहा है. प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे रिलीफ कैंप में चले जाएं. केंद्र सरकार भी इस आपदा पर पूरी नजर बनाए हुए है. फिलहाल जोशीमठ शहर को सरकार ने अब आपदा प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया है. जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया गया है.
उत्तराखंड सरकार से लगातार केंद्र सरकार संपर्क बनाए हुए है. इस घटना को लेकर पीएम मोदी भी हाईलेवल मीटिंग ले चुके हैं. लोगों को तुरंत शिफ्ट करने का एक्शन प्लान तैयार किया जा रहा है.
अब ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल की है. और सवाल उठाये हैं कि पिछले एक साल से जमीन धंसने के संकेत मिल रहे थे. फिर सरकार ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया. इसके अलावा सवाल ये भी है कि आखिर जोशीमठ की जमीन क्यों धंस रही है? तो इसका जवाब USDMA की रिपोर्ट में मिला. रिपोर्ट में बताया गया है कि शहर में खराब नियोजित निर्माण के कारण भूमि धंस रही है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अपर्याप्त जल निकासी और अपशिष्ट जल निपटान प्रणाली ने समस्या को बढ़ा दिया है. वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि जोशीमठ इसलिए डूब रहा है क्योंकि शहर का निर्माण भूस्खलन से बनी जमीन पर हुआ है.
जोशीमठ की जमीन में ढीले मलबे और कमजोर चट्टानें हैं, जो निर्माण का बोझ नहीं सह पा रही हैं. पर्यटकों की बढ़ती संख्या भी जोशीमठ त्रासदी के लिए जिम्मेदार है. वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि जोशीमठ में जो परियोजनाए चल रही हैं. यही भूस्खलन की जिम्मेदार हैं. जमीन के अंदर बनी सुरंगों ने शहर को तहस नहस करके रख दिया है. वही इस पर एनटीपीसी ने बयान जारी कर अपनी सफाई दी है. और कहा है कि एनटीपीसी की बनाई गई सुरंग जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजरती हैं. यह टनल एक टनल बोरिंग मशीन द्वारा खोदी गई है और वर्तमान में कोई ब्लास्टिंग नहीं की जा रही है. जमीन के अंदर बन रहे टनल के कार्य को रोक दिया गया है. वही एक रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि जोशीमठ ग्लेशियर के मलबे पर बसा है. जैसे-जैसे ग्लेशियर पिघल रहे हैं.
मकान,सड़क और दुकानों में दरारें पड़ने लगी हैं.लेकिन अब इस घटना के बीच का सच कुछ भी हो, लेकिन अभी तो जोशीमठ खतरे में है. कई लोगों के सपनों के घर उजड़ रहे हैं. जिन्हे बचाना अभी मुश्किल नजर आ रहा है. ISRO की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते 10 दिनों में शहर की जमीन कई सेंटीमीटर नीचे धंस गई है. जोशीमठ पर वैज्ञानिक 4 दशकों से चिंता जाहिर कर रहे थे. उनका मानना है था कि जोशीमठ की जमीन अनियंत्रित निर्माण नहीं सह सकती है. वैज्ञानिकों की चेतावनी पर सरकार ने सही समय पर ध्यान नहीं दिया. नतीजा अब ऐतिहासिक, पौराणिक और सांस्कृतिक नगर जोशीमठ खतरे में हैं.
कहा तो यह भी जा रहा है कि जोशीमठ ही नहीं ऐसे कई शहर हैं, जहां जोशीमठ जैसी त्रासदी देखने को मिल सकती है. इनमें माणा गांव, टिहरी, धरासू, नैनीताल, हर्षिल, उत्तरकाशी, गौचर, पिथोरागढ़ और चम्पावत शामिल हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि जोशीमठ की तरह ही इन कस्बों का निर्माण उन क्षेत्रों पर किया गया है, जिन्होंने अतीत में बहुत सारे भूस्खलन देखे हैं. यहां की जमीनें कठोर नहीं हैं इसलिए अस्थिर हैं. हर साल इन जगहों पर लाखों पर्यटक आते हैं, जिसकी वजह से कंस्ट्रक्शन वर्क अपने चरम पर है. जोशीमठ की तरह इन शहरों का भी हाल भविष्य में ऐसा हो सकता है.