कुंभ में कल्पवास का महत्व
कल्पवास का अर्थ संगम के तट पर स्नान कर वेदों का अध्ययन और ध्यान करना होता है।
कल्पवास वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है। कल्पवास का विधान हजारों वर्षों से चल रहा है
जब तीर्थराज प्रयाग में कोई शहर नहीं था तब यह भूमि ऋषियों की तपोस्थली होती थी।
प्रयाग में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था। इस जंगल में ऋषि-मुनि तप और ध्यान किया करते थे।
ऋषियों ने गृहस्थों के कल्पवास का विधान रखा था। तब उन्हें अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी।
इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है वह पर्णकुटी में रहता है।
दिन में सिर्फ एक ही बार भोजन किया जाता है और मानसिक रूप से शांत और भक्ति भाव पूर्ण रहा जाता है।
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