तिरंगे के राष्ट्र ध्वज बनने की कहानी, यहाँ पढ़ें  

जश्न ऐ आजादी हो या गणतंत्र दिवस का आयोजन हो या फिर कोई जनांदोलन, देश में हर ख़ास कार्यक्रम में तिरंगा नजर आता है.

लेकिन इस तिरंगे की कहानी बहुत लम्बी है. बीते 117 साल में 6 बार भारत का झंडा बदला गया है. हालाँकि ये बदलाव स्वराज प्राप्ति तक ही हुए थे.

भारतीय ध्वज में आखिरी बदलाव 1947 में हुआ था. उस वक़्त इसे तिरंगे का नाम दिया गया. आइये जानते है तिरंगे के राष्ट्रीय ध्वज तक का सफ़र....

पहला झंडा 1906 में सामने आया. इसमें उपरी हरी पट्टी में आठ कमल के सफ़ेद फूल, बीच की पीली पट्टी में नीले रंग से वन्दे मातरम और नीचे वाली लाल पट्टी में सफ़ेद चाँद सूरज अंकित थे.

1907 में दूसरा झंडा प्रस्तावित हुआ. इसमें केसरिया पीली व हरी पट्टी थी. बीच में वन्दे मातरम लिखा था. वाही इसमें चाँद, सूरज के साथ आठ सितारे भी थे.

१९१७ में एक और नया झंडा आया.  इसमें ५ लाल व ४ हरी पट्टियां थी.  झंडे के अंत में काले रंग का त्रिकोण बना था. बाएं तरफ के कोने में यूनियन जैक था. एक चाँद तारे के साथ 7 तारे भी थे.

1921 में गांधीजी ने इसमें सफ़ेद रंग की एक पट्टी और जुडवायी. देश के विकास को दर्शाने के लिए चलता हुआ चरखा भी लगवाया. फिर इसे आजाद भारत के राष्ट्र ध्वज के लिए स्वीकार किया गया.

झंडा १९३१ में एक बार फिर से बदला गया. नए झंडे में ऊपर केसरिया, बीच में सफ़ेद और नीचे हरी पट्टी बनाई गयी. सफ़ेद पट्टी में चरखा भी दर्शाया गया. इसे इंडियन नेशनल कांग्रेस ने स्वीकार किया था.

1947 में आजादी के साथ हमें तिरंगा झंडा मिला. इसमें ऊपर केसरिया, बीच में सफ़ेद और नीचे हरी पट्टी बनाई गयी. सफ़ेद पट्टी में चरखे की जगह 24 तीलियों वाले अशोक चक्र को गहरे नीले रंग में दर्शाया गया.

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